लखनऊ: आम बजट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सपा प्रमुख प्रवक्ता शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि वित्त मंत्री द्वारा प्रस्तुत बजट असमानता बढ़ाने वाला गरीब विरोधी घुटनाटेकू बजट है। कपड़े और छोटी कारों की कीमतों में की गई वृद्धि से स्पष्ट होता है कि केन्द्र सरकार निम्न और मध्यम आय वर्ग की हितैषी नहीं है। छोटे उद्यमियों पर 29 फीसदी कर बढ़ाने से लघु और मध्यम उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और अर्थव्यवस्था में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का आवांछनीय दखल बढ़ेगा। खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में 100 फीसदी एफ.डी.आई. देना देश की अर्थव्यवस्था के लिए दीर्घकाल में घातक होगा क्योंकि इस तरह के प्रयोग भारत में हमेशा गरीब विरोधी और बेरोजगारी बढ़ाने वाले साबित हुए हैं। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री व समाजवादी चिंतक राम मनोहर लोहिया ने “इकोनाॅमिक आफटर माकर््स“ में लिखा है कि देश की अर्थव्यवस्था का समावेशी विकास सिर्फ देशी पूंजी और देशी तकनीक से ही सम्भव है, विदेशी पूंजी पर आधारित विकास एकांगी और आर्थिक विषमता को बढ़ाने वाला होता है। इस बजट से अमीर और अमीर, गरीब और गरीब होगा।
श्री यादव ने केन्द्र सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि काले धन वालों को एक और मौका देकर सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि वह काले धन की वापसी को लेकर गंभीर नहीं है। इस बजट में उत्तर प्रदेश की घोर उपेक्षा की गई है। सिंचाई मंत्री ने कहा कि जहाँ संप्रग सरकार सिंचाई के लिए पन्द्रह हजार करोड़ रुपये देती थी, वहीं वर्तमान सरकार ने मात्र एक हजार करोड़ रुपए दिया है। वित्त मंत्री किसानों की प्रति व्यक्ति आय पांच साल में दोगुनी करने की बात कह रहे हैं, लेकिन आय बढ़ाने का कोई ठोस प्रावधान इस बजट में नहीं है।
उन्होंने अखिलेश सरकार की प्रशंसा करते हुए कहा कि हमने अपने बेहतर नीतियों की बदौलत गत चार सालों में उत्तर प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय दोगुनी और किसानों की औसत आमदनी ढाई गुनी की है। यह बजट अब तक का सबसे खराब बजट है। यह बजट झूठ और धोखे का पुलिंदा है। समाजवादी चिंतक, सपा सहप्रवक्ता व इण्टरनेशनल सोशलिस्ट काउंसिल के सचिव दीपक मिश्र ने कहा कि इस बजट से भारत अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक मानचित्र में और पिछड़ जाएगा। देश के ऊपर 568.8 बिलियन डाॅलर का कर्ज है और पूरे बजट का 23 फीसदी से अधिक अंश केवल ब्याज अदा करने में चुकाना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में अरूण जेटली जी को ऐसा बजट बनाना चाहिए था जिससे विदेशी कर्ज का दबाव कम होता और भारत की साख बढ़ती। यह बजट सैद्धांतिक रूप से भटका हुआ और व्यवहारिक रूप से भटकाने वाला है।