दिल्ली | वक्त भी क्या चीज होती है. केंद्र में आज नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जिस भारतीय जनता पार्टी की सरकार है वो पार्टी कभी भारतीय जनसंघ कहलाती थी. 1951 में जनसंघ की स्थापना में श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ जिन बड़े नेताओं ने भूमिका निभाई थी उनमें से एक थे प्रोफेसर बलराज मधोक. प्रो मधोक की मृत्यु के बारे में मीडिया को जानकारी केंद्रीय मंत्री हॉ हर्षवर्घन के ट्वीट से मिली.
1920 में जन्मे प्रो मधोक 1966 में भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष बने. बीजेपी की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना प्रो मधोक ने ही की थी. जनसंघ और बीजेपी के बड़े नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी के राजनीति में सक्रिय होने से पहले प्रो मधोक दक्षिणपंथी पार्टी जनसंघ के सबसे बड़े नेता माने जाते थे. आरएसएस के लंबे समय तक प्रचारक रहे प्रो बलराज मधोक का जन्म जम्मू कश्मीर में हुआ था.
फरवरी, 1973 में कानपुर में जनसंघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई थी. प्रो मधोक ने उस बैठक में एक नोट पेश किया था. उस नोट में मधोक ने आर्थिक नीति, बैंकों के राष्ट्रीयकरण पर जनसंघ की विचारधारा के उलट बातें कही थीं. इसके अलावा मधोक ने कहा था कि जनसंघ पर आरएसएस का असर बढ़ता जा रहा है. मधोक ने संगठन मंत्रियों को हटाकर जनसंघ की कार्यप्रणाली को ज्यादा लोकतांत्रिक बनाने की मांग भी उठाई थी. लालकृष्ण आडवाणी उस समय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. आडवाणी प्रो मधोक की इन बातों से इतने नाराज हो गए कि उन्होंने मधोक को पार्टी का अनुशासन तोड़ने और पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने की वजह से उन्हें तीन साल के लिये पार्टी से बाहर कर दिया. इस घटना से बलराज मधोक इतने आहत हुए थे कि फिर कभी जनसंघ और बीजेपी में नहीं लौटे.
प्रो. मधोक जब जनसंघ के अध्यक्ष थे उस समय पार्टी अपनी कामयाबी के शीर्ष पर थी. उस वक्त लोकसभा में जनसंघ गठबन्धन के पास 50 से ज्यादा सीटें थी. पंजाब में जनसंघ की संयुक्त सरकार बनी थी जबकि उत्तर प्रदेश, राजस्थान सहित देश के 8 प्रमुख राज्यों में जनसंघ मुख्य विपक्षी दल बनकर उभरा था.
बलराज मधोक ने 1961 और 1967 में लोकसभा का नई दिल्ली और दक्षिण दिल्ली से प्रतिनिधित्व किया. सदन में प्रो. मधोक ने पं० जवाहरलाल नेहरू के सामने बिना किसी लाग लपेट के पुर्तगालियों से गोवा को आजाद कराने और श्रीराम जन्मभूमि, कांशी विश्वनाथ और मथुरा के श्रीकृष्ण मंदिर को हिन्दुओं को सौंपने जैसे मुद्दों को उठाया था. कहा जाता है उस दौर की भारतीय राजनीति में प्रो. मधोक एकमात्र ऐसे शख्सियत थे जो पंडित नेहरू जैसे वरिष्ठ राननीतिज्ञ को राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व के विषय पर अपनी बात सुनाने को बाध्य कर देते थे.
जनसंघ के सबसे बड़े नेता डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के निधन के काफी समय बाद राजनीति में पर्दापण करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, एल के आडवाणी जैसे नेताओं ने प्रो. मधोक और पं दीनदयाल उपाध्याय की कठोर मेहनत से तैयार सीढियों के बल पर ही राष्ट्रीय राजनीति में मुकाम पाया. बहुत लोगों को शायद ये नहीं पता होगा कि प्रोफेसर बलराज मधोक के जनसंघ के अध्यक्ष रहते हुए ही जनसंघ के दिग्गज नेता पं दीनदयाल उपाध्याय पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री रहे थे और 1967 में प्रो. मधोक के निर्वतमान होने पर राष्ट्रीय अध्यक्ष बने.
प्रो. बलराज मधोक देश की सुरक्षा सलाहकार समिति के सदस्य भी रहे और उन्होंने अनेक बार अस्थायी अध्यक्ष के रूप में लोकसभा की अध्यक्षता करते हुए यादगार भूमिका निभाई. 60 के दशक में प्रो. मधोक भारतीयकरण का मुद्दा उठाया था जिस पर आज तक बहस होती है. उन्होंने एक दर्जन से ज्यादा किताबें लिखी है.