विभिन्न भारतीय सेवाओं के प्रशिक्षु अधिकारियों ने राष्ट्रपति से भेंट की


 

 

The President, Shri Pranab Mukherjee with the probationers of the Indian Defence Accounts Service, Indian Civil Accounts Service, Indian Railway Accounts Service and Indian P&T Service from National Institute of Financial Management, at Rashtrapati Bhavan, in New Delhi on May 14, 2016.

दिल्ली  |   भारतीय सिविल लेखा सेवा, भारतीय रक्षा लेखा सेवा, भारतीय डाक और टेलीग्राफ वित्त एवं लेखा सेवा और भारतीय रेलवे लेखा सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों के एक समूह ने आज राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी से मुलाकात की।

प्रशिक्षु अधिकारियों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि लोक सेवक के रूप में, आपके युवा कंधों पर एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। आपको 5000 वर्ष पुरानी सभ्यता से बाहर निकाल कर इस राष्ट्र को आधुनिक स्वरूप प्रदान करना है। युवा और चुस्त मस्तिष्कों के लिए योगदान करने का यह अनूठा अवसर है।

राष्ट्रपति ने कहा कि यद्पि हमारी सभ्यता बहुत प्राचीन है लेकिन भारत एक युवा राष्ट्र है जो 190 साल के औपनिवेशिक शोषण तथा संसाधनों के अवशोषण, गरीबी और अभाव से पीड़ित होकर अपने भविष्य का निर्माण करने की कोशिश कर रहा है। भारत जैसे असाधारण विविधता वाले राष्ट्र के लिए जहां 128 करोड़ लोग रहते हों, 122 भाषाएं और 1800 बोलियों और सात धर्म मौजूद हों प्रशासन की एक आधुनिक और साझा प्रणाली की स्थापना करना आसान काम नहीं है।

राष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्रीय वित्तीय प्रबंधन संस्थान (एनआईएफएम) का आदर्श वाक्य है मनुष्यवती भूमिरार्थ जो यह बताता है कि सभी संसाधनों में सबसे महत्वपूर्ण संसाधन मानव संसाधन है। अच्छे मानव संसाधन के विकास से अन्य सभी प्राकृतिक संसाधनों का पूरा उपयोग सक्षम हो जाएगा। उच्च गुणवत्ता वाली मानव संपत्ति का निर्माण करना हमारे सामने सबसे बड़ा महत्वपूर्ण कार्य है। उन्होंने इस आदर्श वाक्य को चुनने के लिए एनआईएफएम को बधाई दी।

राष्ट्रपति ने कहा कि अर्थव्यवस्था नए आयाम स्थापित कर रही है। आज निर्णय लेना किसी भी देश के भौगोलिक क्षेत्र के भीतर ही सीमित नहीं है। उन्होंने प्रशिक्षु अधिकारियों से कहा कि इस स्थिति से निपटने के लिए, उनकी सोच में लचीलापन होना चाहिए और उन्हें नई तकनीकों और उपकरणों को अपनाना चाहिए। उन्हें सदैव अपने मन और बुद्धि का उपयोग करना चाहिए। एक-दूसरे की कार्बन प्रतियां होने के बजाय, उनकी हर गतिविधि में उनकी सरलता की छाप होनी चाहिए। इस प्रक्रिया में वे सफल होंगे तो अपने देश और समाज का निर्माण करने में अपना योगदान करने में सफल होंगे। राष्ट्रपति ने गांधीजी का हवाला देते हुए उनसे पूछा कि वे ऐसा परिवर्तन लाएं जो वे विश्व में देखने की इच्छा रखते हैं।


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