राजू का रेडियो


shiven with radio

रामकुमार सिंह

यह कहानी उतनी पुरानी भी नहीं है, जितना दिन में आने वाला सूरज और रात में आने वाला चांद। यह कहानी उतनी नई भी नहीं है जितना हमारे घर के पड़ोस में खड़ा हो गया 4जी का टावर और हमारे कान में लग संवाद और संगीत सुनाने वाला वह तार, पायजामे की तरह जिसका एक सिरा एकवचन है और दूसरा बहुवचन, जिसे हम जब चाहे मोबाइल फोन में घुसाकर अपनी पसंद का गाना सुन लें। दुनिया में मारकोनी ने रेडियो बना दिया था और लोग मजे से उसे निर्बाध रूप से सुनने लगे थे।

बारह साल के राजू के हाथ में पहली बार जब यह छोटा सा जादुई यंत्र आया तो उस पर गाने बज रहे थे और उसे लगा कि ये मजेदार गाने हैं। यह गाने में खेत में काम कर रहे उसके कुछ और दोस्तों ओर परिवार वालों को सुनाएं जाने चाहिए। उसे लगा रेडियो बंद कर देने से रेडियो के गाने उसमें सुरक्षित रहेंगे और ज्योंही खेत में जाकर वह बटन चालू करेगा और सब लोग गाने का मजा लेंगे। राजू खेत में पहुंचा और सब लोगों को बुलाकर उसने कहा कि आओ तुमको बढिया गाने सुनाते हैं। लेकिन उसने रेडियो का बटन चालू किया तो वहां तो खबरें आ रही थी। सारे परिवार वाले और दोस्त जोर जोर से उस पर हंसने लगे और बोले कि गनीमत है, रेडियो पर यह खबर नहीं आ रही है कि तुम एक बेवकूफ लडक़े हो। रेडियो में तो आवाज आती है वह दूर से आती है। वह आती और चली जाती है।

राजू के पिता रामसिंह का एक दोस्त दुबई गया था। वहां मजदूरी करता था। गांव के कई लोग मजदूरी करते थे। जब वे गांव लौटते थे उनके थैलों में बहुत सारा सामान होता था। जैसे बादाम, लौंग, इलायची, घडिय़ां, कपड़े आदि के साथ और भी छोटा मोटा सामान। कुछ लोग एक बड़ा सा टेपरिकॉर्डर लाते थे जिसके दोनों तरफ स्पीकर होते थे और एक ऊपर की तरफ पकडऩे का हत्था। जब वे लोग विदेश से लौटते थे तो घर में पहले से मेला लगा रहता था। ज्यादातर लोगों को यह उम्मीद ही नहीं हुआ करती थी कि उन्हें कोई सामान मिलेगा क्योंकि सामान की हालत तो यह होती थी कि एक अनार और सौ बीमार। लेकिन उनका मन होता था कि कुछ नया तो देखने को मिलेगा। और कुछ नहीं तो जो आदमी लौटकर आया है वह कम से कम अपने हवाई जहाज में बैठने के किस्से ही सुनाता रहेगा। कितनी ही बार सुन लो लेकिन बार बार सुनने में अच्छा लगता था कि हवाई जहाज में सुंदर और गोरी लड़कियां अपने हाथों से मांगो उतनी ही बार पानी पिलाती हैं। उनको गुस्सा तो आता ही नहीं और इधर यह अपनी गांव की बस का कंडक्टर,  उसे जब देखो गुस्से में ही रहता है, पचास पैसे भी किसी दिन किराए में कम पड़ जाएं तो ऐसे देखता है जैसे गोली मार देगा। कई बार तो बस से उतार भी देता है। कुछ लोगों की यह जिज्ञासा होती कि हवाई जहाज की खिडक़ी से नीचे देखने पर डर तो नहीं लगता, और फिर सब कुछ भूलकर सब लोग घंटों तक उसके किस्से सुनते रहते।

विदेश से कमाकर लौटने वाले सारे ही लोग अपने संग्र्रह में एक विशेष किस्म की मलहम या बाम जरूर लाया करते थे और मोहल्ले की जितनी बुढियाएं वहां हुआ करती थी सबको एक एक शीशी दे दिया करते थे। वे आशीर्वाद देती थी और तुरंत ही उसे खोलकर अपने माथे पर मलने लगती थीं कि उन्हें दर्द में आराम मिल गया है। यह बात सच थी या उनके मन का भरम। राम जाने।

तो रामसिंह के दोस्त ने उनको एक रेडियो लाकर दिया था। वे अपने बचपन के दोस्त के इस तोहफे को हासिल करने के बाद बाकी गांव वालों के बीच से ऐसे सीना तानकर निकले जैसे कोई युद्ध जीत लिया हो। बाकी सब लोग जल भुन गए लेकिन राजू के पिताजी के कोई असर नहीं। वे अपना रेडियो लेकर गए और उन्होंने अपने हिसाब से उसको सुनने के नियम कायदे बनाए। यह राजू के गांव में पहला रेडियो आया था, जिसे वे अक्सर शाम को सुनते थे। आकाशवाणी की खबरें सुनने के लिए। वह दो बैंड का रेडियो था और जब पहली बार राजू ने उसे बजते हुए देखा था उसे बड़ा मजा आया था। लेकिन पिताजी रेडियो को एकदम अपने कब्जे में रखते थे। वे खबर सुनते और बाद में उसे अपने कमरे में रखे लोहे के संदूक में रख देते। संदूक में रखने से पहले वे उसकी बैटरी निकाल लेते थे। राजू टुकर टुकर देखता रहता था। उसने एक आध बार पिताजी से रेडियो मांगने की कोशिश की लेकिन उन्होंने यह कहकर उसे फटकार दिया कि यह कोई बच्चों के खेलने की चीज नहीं है। राजू ने कई बार कोशिश की कि बापू कभी तो रेडियो को भूलेंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं। बल्कि अगले ही दिन उन्होंने मां से कोई नया कपड़ा मांग लिया, मां ने नया कपड़ा तो दिया नहीं जो वे अपने लिए ब्लाउज सिलवाने के लिए लाई थीं बल्कि उसने अपना ही एक पुराना सा ब्लाउज दे दिया कि इससे ही काम चलाओ। राम सिंह की हिम्मत नहीं थी कि उसकी मां से उलझे। वह चुपचाप दर्जी के पास गया। पुराने ब्लाउज की सिलाई खोलकर रेडियो के नाप के हिसाब से रेडियो के लिए नई पोशाक बनाने की तैयारियां होने लगीं। रामसिंह का तर्क था कि चूंकि इधर आंधी दिनभर चलती रहती है और बार बार यदि मिट्टी रेडियो के पुर्जो में घुसती रहेगी तो वह खराब हो जाएगा। दर्जी ने नाप लेकर रेडियो की ड्रेस सिल दी। उसके चालू और बंद करने वाले बटन को कपड़े पर ही चीरा मारकर बाहर निकाल दिया। मीटर वेव दिखाने वाली पटटी को खुला रखा गया ताकि कोई भी स्टेशन चुनने में आसानी रहे।

राजू के घर में रेडियो तो था लेकिन उसकी पहुंच से दूर था। रामसिंह रेडियो सुनते, अव्वल तो वे कभी दूसरे बैंड पर जाते ही नहीं थे, यदि जाते भी थे तो पहले रेडियो को बंद करते फिर बैंड बदलते और फिर वापस चालू करते। यह फॉर्मूला भी पता नहीं उन्होंने कैसे विकसित किया कि चलते हुए रेडियो में बैंड बदलने से खराबी का खतरा बढ जाता है।

एक दिन राजू के पड़ोस वाले चाचा दुली सिंह आए और उन्होंने राम सिंह को कहा, क्या यार, हर वक्त खबरें ही सुनते रहते हो। इस पर फिल्मी गाने भी आते हैं। पिताजी के सामने जैसे उन्होंने यह कहा तो उन्हें बड़ा गुस्सा आया। वे यह मानकर की चलते थे कि फिल्मी गाने नहीं सुनने चाहिए। लेकिन दुली चाचा की जिद के आगे उन्‍हें रेडियो कुछ देर के लिए थमाना पड़ा और चाचा ने ज्‍योंही ऑल इंडिया रेडियो की उर्दू सर्विस पर लगाया तो उधर से गाना बजा,  जब दिल ही टूट गया तो जीकर क्‍या करेंगे?  राम सिंह ने दुली चाचा को ऐसे देखा जैसे कह रहे हों, लो हो गई तसल्‍ली?

राम सिंह के रेडियो की चर्चा सुनकर गांव के लोगों ने दुबई और इराक (तब तक उस पर अमेरिका की नजर नहीं पड़ी थी) में मजदूरी कर रहे अपने जान पहचान के लोगों और रिश्‍तेदारों को चिट्ठी लिख दी थी कि भले ही कुछ पैसे लग जाएं लेकिन अबकी बार हर आदमी गांव लौटते में एक एक रेडियो जरूर लाए। देखते ही देखते अगले तीन चार महीनों में गांव में कई रेडियो हो गए। अब शाम होते होते वे गीतमाला सुनने लगे। मोहल्ले में गीतमाला गूंजती और दुली सिंह के पास जो रेडियो आ गया था,  वो तो तेज आवाज करके राजू की घर की तरफ रखता। राम सिंह को चिढाने के लिए।

गांव में दुली सिंह ने एक खबर और फैलाई कि उसके रेडियो में तो टेलीविजन के चैनल की आवाज भी सुनती है। अब राजू का रिश्ता दुली चाचा से गहरा हो गया था। वह फिल्मी गाने और लोक गीत सुनता और गुनगुनाता रहता। रामसिंह को लगा कि राजू उनसे भी ज्यादा आजकल अपने चाचा के साथ वक्त बिताता है और रेडियो के चक्‍कर में लड़का हाथ से निकल रहा है, तो उन्होंने उसे रेडियो सुनने की आंशिक छूट दे दी।

एक दिन राम सिंह गांव से बाहर गया था। पीछे से राजू ने यह रहस्य जानने की कोशिश की कि इस रेडियो में ऐसा क्या घुसा हुआ है जो आवाज आती ही रहती है। उसने पेचकस उठाया और पूरा रेडियो खोल डाला। उसको जहां जहां जगह मिली पेचकस घुसाता गया। रेडियो के पुर्जों के अस्थि पंजर देखकर वह ऊब गया। उसने जब वापस बंद करना चाहा तो बात बिगड़ गई। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि कौनसा पुर्जा कहां से खोला था। यूं लगता था जैसे वे एक जंगल में घुसता चला गया और जब वापस घूमा तो समझ ही नहीं आया कि किस रास्ते से वह जंगल में घुसा था। वह घबरा गया और चुपचाप रेडियो को पुर्जों समेत उठाया और गांव के सूखे कुएं में डाल दिया।

अगले दिन राम सिंह ने जब रेडियो के बारे में पूछताछ की तो राजू ने कहा कि वह बाहर आंगन में रखकर गया था। लेकिन वहां तो कोई रेडियो मिलना नहीं था। राम सिंह ने राजू को बहुत डांटा। गांव में खबर फैल गई कि राम सिंह का रेडियो किसी ने चोरी कर लिया है। राम सिंह को शाम ढले खबरें सुनने की आदत थी। रेडियो के चले जाने के बाद वह उदास रहता। राजू रोजाना अपने उदास बापू को देखता और खुद भी उदास हो जाता। आखिर गांव के किसी भी आदमी पर भी चोरी का आरोप लगा देना उसे तकलीफ दे रहा था।

गांव में छीतर सिंह ने अपने बेटे की शादी की तो बेटी के बाप ने और सामान के साथ एक ब्लैक एंड व्हाइट टेलीविजन भी दे दिया। छीतर सिंह की हैसियत गांव में रातोंरात बढ़ गई। वह शाम होते ही टेलीविजन को घर के बाहर रख देता। हालांकि उस समय गांव में बिजली बहुत कम आती थी। जो आती थी वह भी धुंधली सी। टेलीविजन पर आते हिलते डुलते चित्रों को जादू ऐसा था कि पूरा गांव शाम होते होते छीतर मल के दरवाजे पर जा लगता था। अब दुली सिंह के उस दावे की भी पोल खुल गई कि उसके रेडियो में भी टेलीविजन का चैनल सुनाई पड़ता है। एक दिन तो उसने एक जने से शर्त लगा ली थी कि वह सच बोल रहा है। सचमुच उसके रेडियो पर टेलीविजन का चैनल है। हाथ कंगन को आरसी क्या? सब लोग बैठ गए। टेलीविजन पर तो हीरोईन नाच रही थी और रेडियो पर उस समय खबरों का समय हो गया था। दुली सिंह का झूठ पकड़ा गया। उसी समय बिजली चली गई और आधे घंटे तक लोग उबासियां लेते बैठे रहे। इतनी देर की फिल्म भी निकल गई।

चाचा दुली सिंह ने अपनी झेंप मिटाने के लिए रेडियो के पक्ष में कई तर्क खड़े कर दिए। नंबर एक टेलीविजन देखने से आंखें खराब होती हैं। नंबर दो, टेलीविजन को चलाने के लिए बिजली की जरूरत पड़ती है जो कि गांव में आती ही नहीं। रेडियो को जब मर्जी आए चलाओ। नंबर तीन, टेलीविजन को कंधे में नहीं लटकाया जा सकता। जबकि रेडियों को आप अपने खेत जाते समय कंधे पर लटकाते हुए सुन सकते हो। खेत में काम करते हुए भी सुन सकते हो। नंबर चार, टेलीविजन को देखना पड़ता है, इसलिए जब टेलीविजन देख रहे हो तो कोई और काम नहीं कर सकते। जबकि रेडिया को दूर रखकर सुनते हुए आप भैंस का दूध भी निकाल सकते हो। उसने कहा कि गाने सुनकर भैंस भी दूध थोड़ा ज्यादा देती है और शराफत से खड़ी रहती है।

पंद्रह बरस बीत गए। दुलीसिंह रेडियो का रेडियो भी कबाड़ हो गया। दुलीसिंह और राम सिंह की आंखों से दिखना लगभग बंद हो गया। ज्यादातर लोगों ने समय के साथ अपने घरों में टीवी लगा लिए और रेडियो सब के सब पुराने पड़ गए। गांव के और युवकों की तरह आठवीं तक पढने के बाद कुछ बरस भटकने और सरकारी नौकरी के लिए दो चार दलालों को चालीस पचास हजार रुपए लुटाकर कर्ज के बोझ से दबा युवा राजू भी एक दिन मजदूरी के लिए दुबई चला गया। दो साल की मजदूरी के बाद जब पहली बार लौटने को था तो उसके कई दोस्तों ने उसको फोन करके मोबाइल फोन लाने की बात कही।

राजू दुबई से लौटा तो उसकी बूढ़ी मां ने घर के दरवाजे पर खड़े होकर उसे तिलक लगाया। उसका चेहरा गर्मी से काला हो रहा था। वह ज्यादा पैसा कमाने के लिए वहां ओवर टाइम करता था। उसे हमेशा लगता था, परदेस में कमाना सबसे दर्दनाक होता है। गांव के खेत में दो वक्त की सुकून की रोटी ज्यादा अच्छी थी। लेकिन मोहल्ले के लोग घर पर जमा थे। एक चारपाई पर दुलीसिंह और रामसिंह बैठे थे। राम सिंह के चेहरे पर बेटे के घर लौटने के सुकून था। सब देख रहे थे कि राजू किस किस को मोबाइल देने वाला है। उसने बूढी दादियों को तीन बाम की शीशियां दे दी। राजू ने एक डिब्बा निकाला। पांव छुए और राम सिंह को सौंप दिया। राम सिंह की कांपती अंगुलियों ने डिब्बा खोला। उसमें एक रेडियो था। एकदम वैसा ही जैसा राजू ने कुएं में फेंक दिया था। दुलीसिंह की नजरें राजू से मिली। उनमें कोई आस थी। एक और वैसा ही डिब्बा राजू ने दुलीसिंह को सौंप दिया। राम सिंह और दुलीसिंह की बूढ़ी आंखों से कुछ बूंदें बाहर निकल आई थीं। राजू ने राम सिंह से मुखातिब होकर कहा कि, बापू आपका रेडियो मैंने खराब कर दिया था। हमारे गांव में कोई चोर नहीं है।


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