17 से 18 प्रतिशत की वृद्धि पूरी तरह गलत
लखनऊ। वर्ष 2016-17 हेतु बिजली कम्पनियों द्वारा दाखिल बिजली दर बढोत्तरी प्रस्ताव पर उपभोक्ता परिषद ने एलान किया है कि उसका जमकर विरोध किया जायेगा। बिजली कम्पनियेां द्वारा भले ही घरेलू व कृषि क्षेत्र के विद्युत उपभोक्ताओं के दरों में कोई बढोत्तरी नही प्रस्तावित की गयी है परन्तु वाणिज्यक विद्युत उपभोक्ताओं की दरों मे 17 से 18 प्रतिशत की वृद्धि निश्चित ही बहुत ज्यादा है इसका खामियाजा कहीं न कही प्रदेश की आम जनता को ही भुगतना पडेगा क्योंकि दुकानदार मंहगी बिजली दर की भरपायी अपने बेचे जाने वाले सामानों से करेगा और वह सामान आम जनता ही खरीदेगी जिसका खामियाजा सीधे जनता को ही भुगतना है। ऐसे में इसका विरोध किया जायेगा। बिजली दर व एआरआर का प्रस्ताव अभी नियामक आयोग में विचाराधीन है। एआरआर आयोग द्वारा स्वीकार किये जाने के उपरान्त उपभोक्ता परिषद द्वारा अपनी विस्तृत विधिक आपत्तियॉं बढोत्तरी के खिलाफ आयेाग में दाखिल की जायेगी। वर्तमान सपा सरकार मंे यह पॉचवी बार टैरिफ वृद्धि है जब से आयेाग बना पहली बार ऐसा हो रहा है कि उ.प्र. की सरकार ने प्रत्येक वर्ष उपभोक्ताअेां पर भार डाला है सही मायने में मंहगी बिजली खरीद पर अंकुश लगाकर लाइन लास कम करके वह भ्रष्टाचार पर कठोर कदम उठाकर बिजली दरों में बढोत्तरी को रोका जा सकता था। परन्तु ऐसा नही हुआ जो दुर्भाग्यपूर्ण है।
उ0 प्र0 राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि इस बार पावर कारपोरेशन द्वारा टैरिफ बढोत्तरी से जो अतिरिक्त राजस्व अनुमानित किया गया है वह लगभग रुपये 2850 करोड है और इससे पूर्व वर्ष 2015-16 में कारपोरेशन द्वारा बढोत्तरी से जो अतिरिक्त राजस्व अनुमानित था वह भी लगभग रुपये 3001 करोड था। ऐसे में यह कहना गलत नही होगा कि पावर कारपोरेशन द्वारा प्रत्येक वर्ष की तरह इस बार भी विभिन्न श्रेणी के विद्युत उपभोक्ताओं पर बढोत्तरी का भार पूर्व वर्षों की भॉंति इस वर्ष भी डाला गया है। जहॉं तक सवाल है घरेलू व कृषिध्ग्रामीण क्षेत्र के विद्युत उपभोक्ताओं की दरों में बढोत्तरी न करने का तो पूर्व वर्ष में सरकार के इशारे पर जो बढोत्तरी घरेलू व ग्रामीण क्षेत्र के विद्युत उपभोक्ताओं की दरों में करायी गयी वह बहुत ज्यादा थी जिसका खामियाजा आज भी जनता भुगत रही है सरकार वास्तव मंे जनता को राहत देना चाहती थी तो उसे इस वर्ष घरेलू विद्युत उपभोक्ताओं की दरों मंे कमी का प्रस्ताव लाना चाहिये था। जहॉं तक सवाल है कृषि क्षेत्र के विद्युत उपभोक्ताओं की दरांे का तो बुन्देलखण्ड में किसानों की दरें कम की गयीं यह सही कदम है परन्तु बिजली कम्पनियॉं शायद यह भूल गयी कि उ.प्र. के अन्य 49 जनपद जहॉ सूखाग्रस्त घोषित किया गया था उन जिलों के किसानों की दरों में कमी का प्रस्ताव क्यों नही दिया गया। जो अपने आप मे बडा सवाल है।
उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने कहा कि वर्तमान मेे जो कुल लगभग रुपये 49848 करोड की बिजली खरीद प्रस्तावित है उसमें करोडों अरबों की ऐसी बिजली है जो निजी घरानांे के उत्पादन ग्रहों से खरीद हो रही है। वर्तमान मेे बजाज के पावर हाउस से लगभग रुपये 6.82 प्रति यूनिट में बिजली खरीद प्रस्तावित है, रोजा से रुपये 5.50 प्रति यूनिट में बिजली खरीद प्रस्तावित है इसी का खामियाजा है कि मंहगी बिजली खरीद पर बहुत ज्यादा पैसा व्यय हो रहा है यदि पारदर्शी बिजली खरीद नीति के तहत पावर एक्सचेंज व अन्य श्रोतों से सस्ती बिजली खरीद की जाये तो स्वतः बिजली दरों में बढोत्तरी को रोका जा सकता है।