1702 में राजस्थान के चुरू से आये तपस्वी संत बाबा जगन्नाथ दास ने गाय के गोबर व मिट्टी को मिलाकर बनाई थी हनुमान प्रतिमा
लखनऊ। ज्येष्ठ के पहले बड़े मंगल के अवसर पर राजधानी लखनऊ के ग्रामीण क्षेत्र निगोहां के उतरावां हनुमान मंदिर में 300 वर्ष प्राचीन प्रतिमा पर भव्य श्रष्ंगार के साथ साथ मंहदीपुर बालाजी से लाये गये झंडे को चढ़ाया जायेगा। इसके उपरांत सुन्दरकाण्ड का सामुहिक पाठ भी होगा। मंदिर प्रांगण में समाधि व साधना स्थल अलग-अलग है। श्रद्धालु भक्त सर्वप्रथम साधना स्थल में आकर हनुमान जी को प्रसाद, चोेला, सिंदूर चढ़ाने के उपरांत मंदिर के अगले भाग समाधि स्थल में जाकर बाबा जगन्नाथ दास व अन्य तीन संतो को प्रणाम करते है।
इस मंदिर से जुड़ी एक किस्सा प्रचलित हैै जब बाबा जगन्नाथ दास इस मंदिर में थे तब श्रद्धालु भक्तांे ने एक पूजन हवन के उपरांत भण्डारे का आयोजन किया था, तब भण्डारे के दौरान घी कम पड़ गया था तब श्रद्धालु भक्तों ने बाबा जी से निवेदन किया कि घी कम पड़ गया। तो बाबा जी ने मुस्कुराते हुए कहा कि पास में ही स्थित राम तलैया से दो जैरेकिन ले लो तो श्रद्धालु भक्त आश्चर्य चकित होकर निहारने लगे। तब बाबा जी ने पुनः यही शब्द दोहराया तो श्रद्धालु भक्त रामतलैया गये और दो जैरेकिन ले आये और कडाही में डाला और यह पानी घी का कार्य कर गया यह घटना आस-पास के गांववालों के लिए आश्चर्यचकित करने वाली थी।
मंदिर के समीप ही दो तालाब है जिन्हे राम तलैया व लक्ष्मण तलैया के नाम से जाना जाता है। इस राम तलैया के बारे में आज भी कहा जाता है कि जो भी श्रद्धालु भक्त नागपंचमी के दिन इसमें स्नान करता है उसे सर्पदंश कभी नहीं होता और उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
बड़े मंगल का महत्व – राजधानी व लखनऊ के आस-पास ज्येष्ठ के पवित्र महीने में चारों मंगल पर यह पर्व धूमधाम से बनाया जाता है। इसके पीछे लघुकथा है कि 1802 ई0 में लखनऊ में एक नवाब हुए जिनकी पत्नी राबिया बेगम थी उनकी कोई संतान नहीं थी। उन्हेें सपने में आया कि इस्लामबाड़ी में हनुमान जी की मूर्ति गढ़ी है। उन्होनें उस मूर्ति को वहां से निकलवाया और हीरे-जवाहात से जड़कर उसे गोमतीके उस पार स्थापित कराना चाहते थे लेकिन हाथी वहीं पर बैठ गया काफी कोशिशों के बाद भी हाथी वहां से आगे नहीं बढा़ तब वहां एक साधू ने कहा कि गोमती के पार का क्षेत्र लक्ष्मण जी का है इसलिए मूर्ति यहीं पर स्थापित कराएं। तब राबिया बेगम ने मूर्ति वहीं स्थापित करा दी। उसी दौरान महामारी फैल गयी, और सभी श्रद्धालु भक्तों ने हनुमान जी के दर्शन किये और उनकी कष्पा से सभी ठीक हो गये उसी दौरान ज्येठ का पवित्र महीना था।
तब से लखनऊ में बड़े मंगल का पर्व धूमधाम से मनाया जाने लगा। प्रारंभ में यह पर्व गुड़, धनिया और ठंडा पानी पिलाकर मनाया जाता था। आज समय के साथ साथ गुड धनिया और जल के स्थान पर पूड़ी-सब्जी, छोले भटूरे, कढ़ीचावल, राजमा चावल, आइस्क्रीम, कोल्ड डिंªंक, चाउमीन, पास्ता आदि श्रद्धालु भक्तों को वितरित किये जा रहे है। समिति का आयोजकों से अनुरोध – लोक परमार्थ सेवा समिति के उपसचिव जितेन्द्र सिंह व प्रवक्ता श्रीश शर्मा ने भण्डारा आयोजकों से अनुरोध किया है कि वे सभी भण्डारा स्थल के समीप डस्टबिन (कूड़ापात्र) अवश्य रखवाये जिससे कि आस-पास का क्षेत्र गंदा न हो और खासतौर पर इस बात का जरूर ध्यान रखें कि गऊमाताएं जूठां भोजन न कर सके । भण्डारा प्रारम्भ करने से पहले गऊ माता को भोग अवश्य लगायें।