चौपाल चर्चा डेस्क
हर दस साल बाद नेशनल सैम्पल सर्वे आर्गनाइजेशन द्वारा किये जाने वाले सर्वेक्षण के अनुसार देश के लगभग एक तिहाई ग्रामीण परिवार और करीब एक चौथाई शहरी परिवार कर्जदार हैं। शहरी परिवारों में से 82 प्रतिशत ने यह कर्ज आवास, शिक्षा, विवाह आदि के लिये ले रखा है। काम धंधे के लिए मात्र 18 प्रतिशत ही कर्ज लिया गया है। इसके विपरीत ग्रामीण क्षेत्रों में 40 प्रतिशत परिवारों ने काम धंधे के लिए कर्ज लिया है। कर्ज मिलने की सुविधा बढऩे से कर्जदार परिवारों की संख्या बढऩा तो समझ में आता है, परन्तु चौंकाने वाली बात यह है कि 2002 से 2012 के बीच के दस सालों में शहरी इलाकों में प्रति परिवार कर्ज की औसत रकम बढ़कर सात गुनी और ग्रामीण इलाकों में चार गुनी हो गयी है।
सन 2002 में करीब 18 प्रतिशत शहरी परिवार कर्जदार थे। 2012 में 22 प्रतिशत शहरी परिवार कर्जदार हो गये। 2002 में हर शहरी परिवार पर जहां औसतन 11,771 रुपये का कर्ज था वहीं 2012 में यह रकम बढ़कर 84,625 हो गयी। ग्रामीण इलाकों में 2002 में 27 प्रतिशत परिवार कर्जदार थे जबकि 2012 में 31 फीसदी ग्रामीण परिवार कर्जदार हो गये। उनके कर्ज की प्रति परिवार औसत राशि भी 7,539 रुपये से बढ़कर 32,552 रुपये हो गयी है। इन आंकड़ों तक पहुंचने के लिए नेशनल सैम्पल सर्वे आर्गनाइजेशन ने 2013 में दो बार में एक लाख से ज्यादा परिवारों का अध्ययन किया था, जिसकी रिपोर्ट हाल ही में आयी है।
लेकिन इन आंकड़ों में भी थोड़ा पेंच है। दरअसल औसत कर्ज की रकम निकालने के लिए कर्ज की कुल रकम को कुल जनसंख्या से, जिसमें कर्ज न लेने वाले परिवार भी शामिल होते हैं, भाग देकर निकाली जाती है। अगर कर्ज की कुल रकम को केवल कर्ज लेने वाले परिवारों में बांटा जाये तो वह शहरी इलाकों में 3,78, 238 रुपये प्रति परिवार और ग्रामीण इलाकों में 1,03,457 रुपये प्रति परिवार हो जाती है। जहां तक परिवारों की औसत परिसम्पत्तियों की बात है, सर्वेक्षण से यह अनुमान लगाया गया है कि ग्रामीण परिवारों के पास औसतन प्रति परिवार दस लाख की सम्पत्ति है, जबकि शहरी परिवारों के पास औसतन 23 लाख रुपये की परिसम्पत्तियां हैं। लेकिन सर्वेक्षण की रिपोर्ट यह भी बताती है कि देश में धनवान और गरीब परिवारों के बीच की खांई बहुत चौड़ी है। शहरी क्षेत्रों में सबसे ज्यादा धनी 10 प्रतिशत लोगों में से हरेक के पास औसतन करीब साढ़े 14 करोड़ की सम्पत्ति है, वहीं सबसे गरीब 10 प्रतिशत लोगों में से प्रत्येक के पास औसतन सिर्फ 291 रुपये ही हैं, जिसे लगभग नगण्य ही कहा जा सकता है। यही हाल ग्रामीण इलाकों का भी है। धनवान लोगों कें पास जहां औसतन 5.7 करोड़ रुपये की सम्पत्ति है, वहीं सबसे गरीब लोगों के पास दौलत के नाम पर मात्र 2,507 रुपये ही हैं। यह असमानता आंखे खोलने वाली है। धनवानों और गरीबों के बीच दौलत के इस बंटवारे में महत्वपूर्ण घटक लोगों का पेशा भी है। ग्रामीण इलाकों में कृषि करने वालों की औसत परिसम्पत्ति जहां 29 लाख रुपये की है वहीं कृषि से इतर काम करने वालों की औसत परिसम्पत्तियां सिर्फ सात लाख रुपये तक ही पायी गयीं। शहरी क्षेत्रों में अपना निजी कामकाज करने वालों की औसत परिसम्पत्तियां 51 लाख रुपये की पायी गयीं वहीं नौकरीपेशा लोगों की औसत परिसम्पत्तियां 20 लाख रुपये तक ही सीमित रही हैं।