गन्ना किसान बदहाल, सरकार उदासीन


बस्ती से नरेन्द्र कुमार त्रिपाठी

sugar cane copyउत्तर प्रदेश गन्ने का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है, जहां सबसे ज्यादा चीनी मिले हैं। फिर भी चीनी मिलों को हठधर्मिता व सरकार की उदासीनता के चलते गन्ना किसान बदहाल हैं। गन्ना सदैव से ही राजनीति का शिकार होता चला आया है। सभी लोग गन्ना किसानों के सहारे अपनी राजनीति का उल्लू सीधा करते रहे हैं। खेत में गन्ना रूट बोरर रोग से लेकर टाप बोरर रोग से ग्रसित है। उसी तरह गन्ना किसान को दलाल रूपी रूट बोरर और सरकार रूपी टाप बोरर तबाह करने पर तुले हैं। तमाम लोग गन्ने की राजनीति कर ग्राम प्रधान से लेकर मंत्री तक बन गये लेकिन गन्ना किसानों की किसी ने सुध नहीं ली। दिन प्रतिदिन गन्ने की खेती में जहां लागत बढ़ रही है वहीं सरकार व मिलों के गठजोड़ के कारण किसानों को गन्ने का लाभकारी मूल्य नहीं मिल पा रहा है। किसान बेबस हैं कहां जायें। उनके पास गन्ना के सिवाय और कोई विकल्प भी नहीं है। सरकार व संगठन चाहे तो प्रदेश का किसान एक बार पुन: खुशहाल हो सकता है। परन्तु कोई भी इस कार्य हेतु आगे आने के लिए तैयार नहीं है। किसान अपने गन्ने को बहुत ही कम मूल्य पर क्रेशरों पर बेचने पर मजबूर हैं। चीनी मिलों द्वारा दलालों के सहयोग से घटतौली करना, सामान्य रूप से पर्ची का वितरण न करना, पैदावार के अनुपात में कम पर्ची उपलब्ध करवाना, पेडी व नई पौध का सही से सर्वे न करना इस तरह कई समस्याएं पैदा की जाती हैं। जिसके कारण किसानों का गन्ने की खेती से मोहभंग हो रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार की नयी गन्ना मूल्य नीति दाद में खाज का काम कर रही है। सरकार की ओर से गन्ना का मूल्य 280 रुपये प्रति कुन्तल निर्धारित किया गया है जिसको दो भागों में बांटा गया है। 240+40 रुपये का भुगतान निर्धारित किया गया है। जिसमें 240 का भुगतान किया जा रहा है। लेकिन 40 रुपये का भुगतान चीनी मिलें कब करेंगी, यह पता नहीं। कई चीनी मिलों पर अभी भी हजारों करोड़ रुपये गन्ना किसानों का बकाया है। जबकि माननीय उच्च न्यायालय इसके भुगतान हेतु निर्देश भी दे चुका है। फिर भी उत्तर प्रदेश सरकार की उदासीनता के कारण अब तक सम्पूर्ण बकाया धनराशि का भुगतान नहीं किया गया है।
गन्ना दलाल फर्जी किसानों की सूची बनाकर उनकी पर्ची चीनी मिलों से जारी करवा लेते हैं। फिर किसानों का गन्ना कम मूल्य पर खरीद कर चीनी मिलों को सप्लाई करते हैं। जिस कारण से असली किसान को उसके गन्ना का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है। उत्तर प्रदेश की यह विडम्बना रही है। सबसे अधिक गन्ने का उत्पादन होने के बावजूद भी किसानों की दशा बहुत ही खराब है। यहां तक कि गन्ना किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं। उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड को छोड़कर लगभग पूरे प्रदेश में गन्ने की खेती होती है। चाहे वह पूर्वांचल हो मध्य उत्तर प्रदेश तराई का इलाका हो या पश्चिमी उत्तर प्रदेश हर इलाके में किसान चीनी मिलों के शोषण व सरकार की उदासीनता का शिकार होते हैं। किसान व चीनी मिलों के बीच सेतु का कार्य करने वाला गन्ना विभाग भी इन मिल मालिकों के लिए ही कार्य करता है। इस विभाग का मुख्य कार्य गन्ना उत्पादन संबंधी नयी नयी जानकारियां उपलब्ध कराना, घटतौली रोकना, पर्ची वितरण में संतुलन बनाना, क्षेत्रों का सर्वे कर गन्ने का रकबा आदि निर्धारित करना है, लेकिन गन्ना विभाग इन सभी कार्यों में केवल खाना पूर्ति करता है। उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों को समाजवादी सरकार से बहुत उम्मीदें थीं, लेकिन यह सरकार गन्ना किसानों के हित में कोई भी कार्य करना नहीं चाहती। गन्ना किसानों की दशा व लागत में हो रही बढ़ोत्तरी के कारण गन्ने की खेती से किसानों का मोहभंग हो रहा है। साथ में उनका पलायन जारी है।


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