सूबे के राजनीतिक गलियारों में यह सवाल हवा में तैर रहा है कि कुछ माह पहले सब कहीं छाये रहने वाले प्रदेश भाजपा के महामंत्री पंकज सिंह इन दिनों कहां हैं? लोकसभा चुनाव में सक्रिय भूमिका निभाने वाले और पार्टी की ऐतिहासिक जीत के बाद अति सक्रिय पंकज सिंह को आखिरकार कौन-सा सांप सूंघ गया है? सोशल मीडिया से लेकर टीवी चैनलों व पत्र-पत्रिकाओं तक में पूरी तरह छाये रहने वाले पंकज सिंह का एकाएक गायब हो जाना लोगों के मन में कई सवाल पैदा कर रहा है।
वी. आशीष
लोकसभा चुनाव में सूबे की 80 में से 71 सीटें जीतने के बाद भाजपा नेतृत्व यूपी में सरकार बनाने के सपने देखने लगा है हालांकि उप चुनावों में सपा के हाथों मिले झटके के बाद यह सपना जरा धूमिल हुआ है तथापि आधा दर्जन के करीब नेताओ ने खुद को यूपी के अगले सीएम के तौर पर प्रोजेक्ट करना शुरू कर दिया है। युवा पंकज सिंह भी उन्हीं उत्साही नेताओं की कतार में शामिल थे। पंकज के अति उत्साही समर्थकों ने सोशल मीडिया पर पंकज सिंह नेक्स्ट सीएम यूपी जैसे तकरीबन आधा दर्जन पेज बना रखे हैं। लेकिन धमाकेदार आगाज के बाद अचानक पंकज सिंह का राजनीतिक पटल से इस तरह गायब हो जाना हैरत में डालने वाला है पंकज सिंह का अदृश्य होना अगर कुछ लोग उनको लेकर कुछ दिन पहले फैली ‘अफवाहों’ से जोड़ रहे हैं तो इसमें अस्वाभाविक कुछ भी नहीं। राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह की राजनीतिक महत्वाकांक्षा किसी से छिपी नहीं है और राजनाथ सिंह भी उसे आगे बढ़ाने में किसी प्रकार की कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। पहले उन्होंने अपने बेटे को दिल्ली की राजनीति में जमाने की कोशिश की उसके बाद उत्तर प्रदेश में युवराज बनाने की पहल शुरू कर दी। वैसे भी कांग्रेस और सपा के बाद भाजपा में कोई युवराज नहीं था सो राजनाथ सिंह की कोशिश कोई गैर वाजिब कोशिश भी नहीं थी। आज के राजनीतिक परिवेश में अपने बेटे के राजनीतिक करियर को आगे बढ़ाना कहां गैर वाजिब समझा जाता है?
भाजपा में कल्याण सिंह, यशवंत सिन्हा और प्रेम कुमार धूमिल जैसे नेता अपने बेटों को चुनावी राजनीति में लॉन्च कर ही चुके हैं। लेकिन राजनाथ सिंह इस मामले में पिछड़ गए। पंकज सिंह अब तक एक बार भी चुनावी मैदान में नहीं उतरे हैं। पिछले महीने हुए उत्तर प्रदेश में विधानसभा उपचुनाव में नोएडा सीट से पंकज सिंह की दावेदारी सबसे मजबूत मानी जा रही थी, लेकिन पार्टी ने इस सीट पर प्रमिला बाथम को टिकट देने का ऐलान किया। लोकसभा चुनाव के दौरान भी राजनाथ के गाजियाबाद सीट खाली करने पर पंकज सिंह को टिकट दिए जाने की संभावना जताई जाने लगी थी पर ऐसा नहीं हुआ। 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव में पंकज सिंह को बनारस क्षेत्र की एक सीट से टिकट मिला जरूर था लेकिन भारी विरोध के बाद उन्होंने खुद ही टिकट पापस कर दिया था। पंकज सिंह के विरोध का मसला सिर्फ चुनावी टिकट तक ही सीमित नहीं रहा। जब उन्हें भारतीय जनता युवा मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया तो उस वक्त भी इसका जोरदार विरोध हुआ था। अंत में उन्हें इस पद से भी हाथ धोना पड़ा।
सवाल यह है कि लोकसभा चुनाव के महज चंद महीनों में ऐसा क्या हुआ जिसने पंकज सिंह को नेपथ्य में जाने और मुंह बंद करने के लिए विवश कर दिया है? मीडिया रिपोर्ट के अनुसार किसी कें्रदीय मंत्री के साथ मुलाकात को लेकर यह अफवाह फैली कि पंकज सिंह ने किसी उद्योगपति से पैसे की मांग की, जिस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नाराज हो गए और उन्होंने पंकज सिंह को दिल्ली बुलाकर उनके पिता गृह मंत्री राजनाथ सिंह के सामने ही फटकार लगाई। इस अफवाह को लेकर भावुक हुए राजनाथ सिंह ने जब अपनी पीड़ा सार्वजनिक कर दी तब पार्टी और सरकार दोनों ही डैमेज कंट्रोल मोड में आ गयी और आनन-फानन प्रधानमंत्री कार्यालय और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने सफाई दी। गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने उनके पुत्र पंकज सिंह को लेकर पिछले दिनों फैली अफवाहों के लिए किसी व्यक्ति अथवा नेता विशेष पर संदेह व्यक्त करने से बचते हुए कहा कि अफवाहबाज कौन है, यह पता लगाना खोजी पत्रकारों का काम है। स्थिति की गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि राजनाथ ने यहां तक कह दिया कि यदि पंकज पर लगे आरोप सही पाए गए तो वह राजनीति से संन्यास ले लेंगे।
आज नहीं तो कल सच्चाई सामने आ ही जाएगी। लेकिन इस घटनाक्रम के बाद पंकज सिंह का पर्दे के पीछे चले जाना कई सवाल व आशंकाएं तो पैदा करता ही है। सूत्रों की मानें तो पंकज सिंह के बहाने उनके पिता के पर कतरे गए हैं, लेकिन सीधी बात यह है कि इस सबसे खुद पंकज सिंह का राजनीतिक करियर प्रभावित हो रहा है। यह बात तो खुद पंकज सिंह और उनके पिता गृहमंत्री राजनाथ सिंह भी जानते ही होंगे कि ‘नजर से दूर तो दिमाग से दूरÓ वाली उक्ति राजनीति में भी सौ टंच लागू होती है। ऐसे में कोई बड़ी मजबूरी ही होगी जो पंकज सिंह को लोगों की नजरों से परे रहने पर विवश कर रही होगी।