नई दिल्ली। उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने के फैसले पर केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए वित्त मंत्री अरूण जेटली ने कहा है कि राज्य की राजनीतिक स्थिति ”शासन की नाकामी का सटीक उदाहरण” है।
जेटली ने साथ ही जोर देकर कहा कि ऐसी स्थिति में संविधान केंद्र को ”कई विकल्पÓÓ मुहैया कराता है। जेटली ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के संदर्भ में वे आधार बताए जो इस कांग्रेस शासित राज्य में संवैधानिक अव्यवस्था को स्पष्ट करते हैं।
राज्य में संविधानिक मिशनरी के सवाल पर जेटली ने कहा, उत्तराखंड सरकार हर दिन संविधान के प्रावधानों की हत्या कर रही थी। शायद स्वतंत्र भारत में यह पहला उदाहरण है कि एक नाकाम हो गए विधेयक को राज्य विधानसभा में बिना प्रॉपर वोटिंग के पारित कर दिया गया। 18 मार्च के बाद राज्य में जो सरकार सत्ता में थी, वह असंविधानिक थी।
वित्त मंत्री जेटली ने कहा कि विधानसभा में स्पीकर ने 18 मार्च को उस समय विनियोग विधेयक पारित घोषित किया था जब 67 में से 35 विधायकों ने उन्हें पहले से लिखकर दे दिया था कि वे इसके खिलाफ मत देंगे। इन विधायकों ने सदन के पटल पर मतविभाजन पर जोर दिया था लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ने इसे ध्वनिमत से पारित घोषित किया था जबकि वास्तव में 67 में से केवल 32 उपस्थित सदस्यों ने इसका समर्थन किया था। 71 सदस्यों के सदन में तीन अनुपस्थित थे।
जेटली ने कहा, भारतीय लोकतंत्र के 68 वर्ष में, इस तरह की घटना नहीं हुई। मुझे नहीं लगता कि भारत की संसदीय प्रणाली को इससे ज्यादा बड़ी क्षति हुई हो।