लाइफ में कितना जरुरी है शारीरिक संबंध बनना ?


 

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सेक्स. ये शब्द सुनते ही कोई मुंह छुपाने लगता है तो कोई मुंह बिचकाने लगता है. इंसानों के बीच जिस्मानी रिश्तों का मसला बहुत ही पेचीदा है. इसको साधारण तरीक़े से समझ पाना या बता पाना बेहद मुश्किल है. दुनिया में जितने तरह के लोग हैं, उतनी ही तरह की उनकी जिस्मानी ख़्वाहिशें. उनसे भी ज़्यादा उनकी सेक्स को लेकर उम्मीदें और कल्पनाएं. हर देश, हर इलाक़े यहां तक कि हर इंसान की शारीरिक रिश्तों को लेकर चाह एकदम अलग होती है. अब जो मामला इतना पेचीदा हो उसमें सामान्य यौन संबंध क्या है, ये बताना और भी मुश्किल है. सेक्स के बारे में लोगों की पसंद का दायरा इतना अलग-अलग और बड़ा है कि पक्के तौर पर किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता. सामान्य ‘सेक्स लाइफ़’ क्या है? इस सवाल का जवाब खोजने के लिए हमने कुछ आंकड़ों को देखा-समझा और कुछ मोटे-मोटे नतीजों पर पहुंचने की कोशिश की है. जैसे कि आख़िर हमें कितना सेक्स करने की ज़रूरत है या फिर हम बिस्तर पर अपने साथी से कैसे बर्ताव की उम्मीद करते हैं?

 

हमारी इस कोशिश के नतीजे हम आपको बताएं, उससे पहले ये समझ लीजिए कि ये मोटे अनुमान हैं, कोई ठोस नतीजे नहीं. वजह साफ़ है. खुले से खुले समाज में रहने वाले लोग भी सेक्स के बारे में खुलकर बात करने से कतराते हैं. कुछ लोग सच को छुपाते हैं, तो कुछ, झूठे दावों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं, हक़ीक़त के तौर पर तो, हमारी इन आंकड़ों को आप एक औसत अनुमान के तौर पर देखें. हम एक बार फिर बता दें कि किसी भी सर्वे से सेक्स के बारे में ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच सकते हैं. पहला सवाल ये कि हम कितना यौन संबंध बनाना चाहते हैं? इसके जवाब में हमने जिन आंकड़ों पर ग़ौर किया उनके मुताबिक़ ये अलग-अलग इंसान की अलग-अलग ज़रूरत है. मगर दुनिया में कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्हें कभी भी सेक्स की ज़रूरत ही नहीं महसूस होती. ये आंकड़ा कुल आबादी का दशमलव चार फ़ीसदी से तीन फ़ीसदी तक हो सकता है. हालांकि मोटे तौर पर जानकार ये कहते हैं कि क़रीब एक फ़ीसदी लोग, सेक्स में ज़रा भी दिलचस्पी नहीं रखते. हालांकि इन लोगों ने भी कभी न कभी यौन संबंध बनाया होता है.

इसके बाद आता है समलैंगिक संबंध में दिलचस्पी का. एक मोटे अनुमान के मुताबिक़, दुनिया भर में क़रीब पंद्रह फ़ीसदीी लोग समलैंगिक संबंध बनाना चाहते हैं. इनमें औरतें भी हैं और मर्द भी. ये आंकड़ा भी आपके सवाल के हिसाब से बदल सकता है. मसलन अगर आप आकर्षण या खिंचाव को पैमाना बनाएंगे तो दूसरा जवाब मिलेगा. पहचान की बात करेंगे तो अलग आंकड़ा मिलेगा. समलैंगिक बर्ताव की बात करेंगे तो ये आंकड़ा फिर बदल जाएगा. मगर पंद्रह फ़ीसदी इंसान समलैंगिक संबंध में दिलचस्पी रखते हैं, ये बात मोटे तौर पर मानी जाती है. (ये आंकड़े साइकोलॉजी और सेक्सुएलिटी नाम की वेबसाइट के आंकड़ों पर आधारित हैं) अगला सवाल आता है कि आप किससे जिस्मानी रिश्ते बनाते हैं? इस सवाल के भी दिलचस्प जवाब सामने आए हैं.

 

अक्सर ये माना जाता है कि कैज़ुअल सेक्स अक्सर दो अनजान लोगों के टकरा जाने से होता है. मगर सच्चाई इससे बहुत दूर है. जिस ‘वन नाइट स्टैंड’ की बहुत चर्चा होती है, असल में वो बहुत कम होता है. लोग ये भी सोचते हैं कि ऐसे रिश्ते सिर्फ़ युवाओं के बीच चलन में हैं. मगर, 2009 के एक अमरीकी सर्वे के मुताबिक़, बुज़ुर्गों के बीच भी ‘वन नाइट स्टैंड’ के आंकड़े युवाओं के बराबर ही हैं. यानी आधी आबादी के लिए ये मामला ज़रा जटिल है. जर्नल ऑफ सेक्सुअल मेडिसिन के मुताबिक़, सबसे ज़्यादा 53 परसेंट लोग, लंबे रिश्ते के साथी से सेक्स करते हैं. वहीं चौबीस फ़ीसदी लोग कैज़ुअल पार्टनर के साथ रिश्ते बनाते हैं.दोस्तों के साथ यौन संबंध बनाने वालों की संख्या 12 फ़ीसदी कही जाती है. तो अनजान लोगों के साथ केवल नौ फ़ीसदी लोग सेक्स करते हैं. सारे अंदाज़े के विपरीत, यौन कर्मियों से केवल दो फ़ीसदी लोग यौन संबंध बनाते हैं. अगला सवाल जिसका जवाब हमने तलाशने की कोशिश की वो है कि आख़िर हम कितनी बार सेक्स करते हैं?

अमरीका में हुए ग्लोबल सेक्स सर्वे के आंकड़े कहते हैं कि चालीस फ़ीसदी लोग, हफ़्ते में एक से तीन बार सेक्स करते हैं. वहीं 28 परसेंट लोग महीने में एक या दो बार. केवल साढ़े छह फ़ीसदी लोग हफ़्ते में चार या इससे ज़्यादा बार जिस्मानी रिश्ते बनाते हैं. वहीं 18 फ़ीसदी ऐसे हैं जिन्होंने पिछले एक साल में एक बार भी सेक्स नहीं किया है. आठ फ़ीसदी ऐसे हैं जो साल में एक बार यौन संबंध बनाते हैं.
वैसे, बढ़ती उम्र के साथ सेक्स की चाहत कम होती जाती है. मगर इस सर्वे से एक सबसे चौंकाने वाली बात जो सामने आई वो ये कि कई ऐसे बुजुर्ग भी हैं जो युवाओं से ज़्यादा यौन संबंध बनाते हैं. कई तो महीने में दो बार और क़रीब ग्यारह फ़ीसदी लोग हफ़्ते में एक बार सेक्स करते हैं. जर्नल ऑफ सेक्सुअल मेडिसिन के मुताबिक़, 86 फ़ीसदी महिलाएं और 80 फ़ीसदी मर्द, सामान्य यौन संबंध बनाते हैं. ये दावा अमरीका में हुए एक सर्वे की रिपोर्ट के हवाले से किया गया है. जिसमें 18 से 59 साल की उम्र के क़रीब दो हज़ार लोगों की राय जानी गई थी. इस सर्वे के मुताबिक़ 67 फ़ीसदी महिलाएं और 80 फ़ीसदी मर्द ओरल सेक्स करते हैं.

यौन संबंध बनाने में लगने वाले वक़्त की बात करें तो सामान्य जोड़े इसमें पंद्रह से तीस मिनट ख़र्च करते हैं. इतना ही वक़्त गे मर्द लेते हैं. वहीं, लेस्बियन महिलाएं यौन संबंध में सबसे ज़्यादा तीस से चालीस मिनट लगाती हैं. वैसे एक बात और है. लेस्बियन महिलाएं, गे मर्दों या सामान्य जो़ड़ों के मुक़ाबले कम ही जिस्मानी संबंध बनाती हैं. ये दावा कनाडा और अमरीका में हुए एक सर्वे के हवाले से किया गया है.
सेक्स की चर्चा हो और ऑर्गेज़्म की बात न हो, ये कैसे हो सकता है? आम तौर पर ये माना जाता है कि महिलाएं, झूठे ऑर्गेज़्म के दावे करती हैं. अक्सर अपने मर्दों को ख़ुश करने के लिए. कई बार इसलिए भी कि उनकी अहम् को चोट न पहुंचे. लेकिन, जर्नल ऑफ सेक्स रिसर्च कहता है कि सिर्फ़ महिलाएं ही नहीं, कई बार मर्द भी ऑर्गेज़्म को लेकर झूठ बोलते हैं. महिलाओं में ‘फेक ऑर्गेज़्म’ के दावे का आंकड़ा पचास फ़ीसदी है तो मर्दों में इसका आधा यानी 25 फ़ीसदी. जर्नल ऑफ़ सेक्स रिसर्च के मुताबिक़ मर्दों के झूठे ऑर्गेज़्म की वजह कमोबेश अपनी महिला साथियों जैसी ही होती है. ताकि उनकी सेक्स पार्टनर को बुरा न लगे. मन न होने के बावजूद कई बार मर्दों को सेक्स करना पड़ा तो उन्होंने ऑर्गेज़्म का झूठा दावा किया, सिर्फ़ अपनी साथी का मन रखने के लिए. हालांकि ऐसा करने वाले मर्दों में से सिर्फ़ बीस फ़ीसदी को ये लगता था कि उनकी महिला साथी भी ऑर्गेज़्म को लेकर झूठ बोलती होगी. क्या हुआ? इन आंकड़ों के आधार पर आप सेक्स को लेकर और उलझ गए. इसीलिए, बेहतर होगा कि आप अपने तजुर्बे, अपने साथी की चाहतों को समझें, दूसरों की फ़िक्र न करें.


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